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कौवे को क्यों दिया जाता है पिंडदान! जानिए इसके पीछे का राज

दरअसल दोस्तों बात उस समय की है जब प्रभु श्री राम माता सीता के साथ चित्रकूट वन के एक उपवन में भगवान राम माता सीता के बाह पर सर टिकाकर गहरी नींद में मगन थे। फिर अकस्मात वहां पर एक कौवा आ गया और फिर उसने श्री राम की निद्रा में विघ्न डालना प्रारंभ कर दिया माता सीता प्रभु राम की निद्रा में वाइन नहीं पढ़ने देना चाहती थी माता सीता की इस स्थिति का लाभ उठाकर उस कौवे ने माता सीता पर अपनी नुकीली चोंच से प्रहार  कर दिया उसने अनेकों बार माता सीता पर प्रहार किए और अंत मे उस दुष्ट कौवे माता सीता को आघात (गहरी चोट) पहुंचा दिया।

फिर माता-पिता के रक्त की एक बूंद भगवान राम के माथे पर गिरी जिससे उनकी नींद खुल गई। प्रभु राम ने माता सीता से पूछा की सीते तुम्हारी कोमल काया पर आघात करने का दुस्साहस किसने किया। तभी प्रभु श्री राम इधर-उधर वन में देखने लगे और उनकी नजर उसे कौवे पर पड़ी जिसे देखते ही उन्हें पता चल गया कि यह कार्य इस कौवे का ही है। जिसे देखकर प्रभु श्री राम अत्यधिक क्रोध में आ गए और पास ही जमीन पर बड़ी एक छोटी लकड़ी को उठाकर उसे  ब्रह्मास्त्र बनाकर कौवे पर साध दिया।
 दरअसल दोस्तों वह काक रूपी राक्षस के वेष में देवराज इंद्र का पुत्र जयंती था। जो अब ब्रह्मास्त्र से अपना बचाव करने के लिए इधर-उधर उड़ रहा था वह मदद के लिए सप्तऋषियों  के पास गया। लेकिन प्रभु के काज में हस्तक्षेप करने में सबने असमर्थता जताई और जयंती से कहा की राम के ब्रह्मास्त्र से बचाव संभव नहीं है फिर निराशा और भयभीत होकर इंद्र पुत्र जयंती अपने पिता इंद्र के पास गया इंद्रदेव ने कहा जयंती तुमने माता सीता की करुणा की परीक्षा लेने का दुस्साहस करके बहुत बड़ा अपराध किया है और स्वयं को प्रभु श्री राम के क्रोध का कारण बनाया है अब तुम्हें देवता तो क्या स्वयं ब्रह्मा जी भी ब्रह्मास्त्र को नहीं रोक सकते। अब राम के ब्रह्मास्त्र से तुम्हारी रक्षा स्वयं प्रभु श्री राम ही कर सकते हैं।


 फिर जयंती प्रभु श्री राम के पास गया और उनके चरणों में गिरकर उनसे अपने प्राणों की रक्षा करने की एक गुहार करने लगा उसे अपनी गलती का पश्चाताप हुआ जिस पर प्रभु श्री राम ने उसे क्षमा कर दी परंतु राम ने कहा कि मैं अपने ब्रह्मास्त्र को रोकने में सक्षम हूं यह ब्रह्मास्त्र व्यर्थ नहीं जाता इस पर जयंती बोले की प्रभु मेरी दाहिनी आंख की दृष्टि सर्वप्रथम आप दोनों पर पड़ी जिससे मेरे मन में यह  कुविचार आया था। कृपया आप अपने ब्रह्मास्त्र को मेरी दाहिनी आंख पर केंद्रित करके मुझे दंडित करें परंतु मेरी प्राण मत हारिए। जिसके परिणाम स्वरुप जयंती की दाहिनी आंख खंडित हो गई जयंती की क्षमा याचना और अपनी गलती पर पश्चाताप को मध्य नजर रखते हुए प्रभु श्री राम ने जयंती को वरदान दिया।
कि तुम अपनी एक आंख से वह सब देख सकोगे जो इस सृष्टि की नजरों से अदृश्य या ओझल रहता है। तुम सभी पितरों और असंतुष्ट आत्माओं के दर्शन करने में सक्षम रहोगे

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