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'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' संत रविदास के द्वारा कही गई यह अनोखी ऊक्ति

भगवान को पाने की आंख में एवं सदा भगवान का प्रिय रहने के लिए लोग तीर्थ यात्रा करते हैं। जबकि खुद भगवान के ध्यान में मगन रहने वाले संत महात्मा लोग हर समय भगवान का नाम लेते रहते हैं इनसे बड़ा तीर्थ धरती पर कहीं नहीं है।



संत रैदास जिनका असली नाम संत रविदास है। हिंदू शास्त्रों में संतों के बारे में कहा है कि संत वह है जो सांसारिक इच्छा से और सांसारिक मोह माया से दूर परोपकार में अपना समय लगाएं वह संत है। इसी प्रकार का व्यक्तित्व संत रविदास जी का भी था यह पूजा के नाम पर अपने कर्म और परोपकार को ही  पूजते थे। और गंगा मैया के बहुत बड़े भक्त थे संत रविदास जी का जन्म काशी में एक चर्मकार परिवार में हुआ इनके पिता का नाम संतोष दास एवं माता का नाम कलशा देवी था संत रविदास जी के कई दोहे एवं ऊक्तियां प्रसिद्ध है जो आज भी लोगों को पथ प्रदर्शित करने का कार्य करते हैं संत रविदास जी की एक ऊक्ति यह भी है "मन चंगा तो कठौती में गंगा" सुनने में यह थोड़ा अनोखा सा लगता है। परंतु सुनने में यह उक्ति जैसी लगती है इसका अर्थ अत्यंत महत्वपूर्ण है आगे हम जानेंगे कि इस उक्ति के पीछे कहे जाने का असल अर्थ क्या था।



संत रविदास संत कबीर साहेब जी थे संत रविदास के विषय में एक कथा अत्यंत प्रचलित है एक बार वह अपने जूते बनाने के कार्य में व्यस्त थे तभी उनके पास कुछ ब्राह्मण आए इनमें से ब्राह्मण ने कहा "मेरी जूती थोड़ा सा टूट गई है इसे ठीक कर दो" इसके बाद रविदास जी उनकी जूती ठीक करने लग गए फिर अचानक से संत रविदास जी ने ब्राह्मणों से पूछा कि श्रीमान— आप कहां जा रहे हैं ब्राह्मणों ने जवाब दिया हम सभी गंगा स्नान करने जा रहे हैं और कहा कि तुम चमड़े का कार्य करने वाले क्या जानो की गंगा स्नान  करने से कितना पुण्य मिलता है। इस पर संत रविदास जी ने कहा कि आपने सही कहा श्रीमान! हम मालिन और नीच लोगों के गंगा स्नान करने से गंगा भी या अपवित्र हो जाएगी। इसके बाद ब्राह्मण ने कहा  "यह लो अपनी मेहनत की एक कौड़ी और मुझे मेरी जूती दो" फिर रविदास जी बोले कि यह कौड़ी आप इस रविदास की ओर से गंगा मैया को भेंट कहकर अर्पित कर देना इसके बाद ब्राह्मण अपनी जूती लेकर चला गया और रविदास जी फिर से अपने कार्य में लग गए गंगा स्नान करने के बाद जब ब्राह्मण वापस लौटने लगा तब उसे याद आया कि उसने वह कौड़ी तो गंगा मैया को अर्पित की ही नहीं उसने फिर वह कौड़ी निकाली और गंगा के तट पर खड़े होकर कहा "की है गंगा मैया रविदास की यह भेंट आप स्वीकार करें इस वक्त गंगा में से एक हाथ प्रकट हुआ और कहा लाओ मेरे भक्त रविदास की भेंट मेरे हाथ पैर रख दो आवास के अनुसार ब्राह्मण ने उसे कौड़ी को हाथ पैर रख दिया और हैरान होकर जब वहां से वापस लौटने लगा फिर वापस उसे वही आवाज आई "ब्राह्मण! यह भेंट मेरी ओर से रविदास को देना" गंगा जी के हाथ में एक हीरे रन जड़ित कंगन था हैरान ब्राह्मण उसे कंगन को लेकर चल पड़ा और चलते-चलते रास्ते में सोचने लगा की रविदास को क्या मालूम की गंगा मैया ने उसके लिए क्या भेंट दी है। "अगर यह रतन जनित कंगन में महारानी को भेंट स्वरूप दूं तो महाराज मुझे इनाम में मालामाल कर देगे।" फिर वह ब्राह्मण राज्य दरबार में पहुंचा और रानी को वह कंगन भेंट स्वरूप दे दिया जिसे देखकर महारानी बहुत खुश हुई।


ब्राह्मण राजा से मिलने वाले इनाम के बारे में सोच ही रहा था कि रानी ने अपने दूसरे हाथ की ओर देखा और राजा से कहा कि उन्हें अपने दूसरे हाथ में भी वैसा ही कंगन चाहिए। राजा ने ब्राह्मण से कहा कि वह किसी तरह का दूसरा कंगन भी लेकर आए ब्राह्मण ने राजा से कहा कि आप इसी तरह का होगा वह दूसरा कंगन अपने राज जौहरी से कहकर बनवा सकते हैं इस पर राज जौहरी ने कहा कि यह संभव नहीं है इस पर जड़े रत्न वे इतने कीमती हैं कि हमारे राजकोष में भी ऐसे रत्न नहीं  है। इस पर राजा को क्रोध आ गया उसने ब्राह्मण से कहा की इतना कीमती कंगन तुम्हारे पास कहां से आया या तो तुम इसी की तरह दूसरा कंगन लेकर आओ वरना मृत्यु दंड के लिए तैयार हो जाओ यह सुनकर ब्राह्मण की आंखों में डर से आंसू आने लगे और उसने सारी सच्चाई राजा के सामने रख दी। और कहा कि इस संसार में एकमात्र व्यक्ति रविदासी है जो माता गंगा से दूसरा कंगन लाकर दे सकता है। इस पर राजा को विश्वास नहीं हुआ । वह ब्राह्मण के साथ संत रविदास जी के पास पहुंचा जो उसे समय अपने कार्य मे रोज़ की तरह व्यस्त थे। ब्राह्मण ने दौड़कर उनके पैर पकड़ लिए और अपने जीवन की रक्षा की प्रार्थना करने लगे। जब संत रविदास जी ने राजा से इस ब्राह्मण के जीवन की प्रार्थना की तो राजा ने बदले में दूसरा कंगन मांग लिया फिर तब रविदास मां गंगा से प्रार्थना करने लगे और अचानक से रविदास जी कठौती में अपना चमड़ा धोते थे इस कठोती में से गंगा मैया उत्पन्न हो गई और दूसरा कंगन रविदास के हाथ में दिया यह सब देख राजा हैरान हो गया 

नोट —: "जरूरी नहीं हर वक्त जुबान पर भगवान का नाम आए। वह लम्हा भी भक्ति का होता है जब इंसान इंसान के काम आए।"

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